Tuesday, January 28, 2014

शायद जान लूं तुम्हें

आपके ख्यालों की इक अजनबी,अनजानी सी डोर ,
खिंच चला मन मेरा बरबस,बेबस सा आपकी ओर।

आप ऐसे हैं,वैसे हैं,कैसे हैं,या फिर चाहे जैसे भी हैं ,
मेरे ख़्वाबों,ख्यालों की बातों के,मित्र खास जैसे हैं ।

मन ही मन सवाल करती,जवाब भी खुद ही देती हूँ ,
अनदेखी उसकी छवि में,सतरंगी रंग खुद ही भर्ती हूँ।

रूठती,मनाती,गुनगुनाती,मुस्काती हुई तस्वीरों में ,
कसमसाती सी यादें हैं,ज्यों बंधी प्रेम कि जंजीरों में ।

आपको तो इल्म भी नहीं होगा,क्या किया है आपने ,
किस कदर मेरे कोरे मन पर,जाल बिछाया है आपने।

तुम्हारे दिल की अनंत तहों का,कुछ पता नहीं है हमें ,
फिर भी पन्ने पलटती जाती हूँ,शायद जान लूं तुम्हें ।

                                                    ( जयश्री वर्मा )










Monday, January 20, 2014

तुम सही थे मैं गलत


तुम धारा के विपरीत चलने की आदत के अनुसार,
उतर पड़े जानने को कि न जाने क्या है नया उस पार ।

मैं ताकता,मन मसोसता और सोचता ही रह गया,
अजब डर को पकड़े दिल को कचोटता ही रह गया ।

तुमने गहराई में उतरकर कुछ खोया खुछ पाया,
मुझे डराता रहा हरपल अंजाना,अनहोनी का साया ।

आज तुम्हारे हाथों में कुछ हार तो कुछ जीत है,
कुछ मिले कुछ बिछड़े और कुछ नए पुराने मीत हैं ।

तुमने समय बहुमूल्य समझ निभाया अपना धर्म,
खोज लिया जानी,कुछ अनजानी,घटनाओं का मर्म।

तुमने भविष्य पीढ़ियों के लिए मार्ग बनाया सुगम,
कहलाये तुम पथप्रदर्शक हर किसी ने किया नमन।

ईश्वर ने भी कर्मशील का सहयोग सदा ही है किया,
विपरीतताओं ने भी प्रयत्नशील को हाथों-हाथ लिया।

मैं पुरानी परिपाटी की लीक पर ही रहा सदा खड़ा,
अपने डर,उसूल और कुंठाओं संग सदा ही रहा अड़ा।

अपने भीतरी भय और रूढ़ियों संग सिमटा ही रहा,
विधाता,काल,भाग्य और बुरे वक्त को कोसता ही रहा ।

तुमने बंधन तोड़ पुराने,नया आसमान है अपनाया,
और आने वाली पीढ़ी को है नई ऊंचाई तक पहुंचाया ।

बाद तुम्हारे फिर आयेंगे तुम सरीखे कुछ मतवाले,
तुम्हारे छोड़ी ऊंचाइयों को और भी आगे बढ़ाने वाले।

समझा मैं जीवन है नव नीतियों को खोजना सतत,
आज सोचता हूँ कि ऐ मेरे मित्र तुम सही थे मैं गलत ।

                                                        (  जयश्री वर्मा )







Monday, January 13, 2014

फ़र्क तो है


बेटा जन्मा तो -
लड्डू बंटेंगे ,थाली बजाई जाएगी,
ढोलक की थाप पर सोहर भी गई जाएगी,
दादा-दादी हर्षेंगे,कि उनकी वंशबेल बढ़ जाएगी,
खानदान बढ़ा है आगे अब न्योच्छावर बांटी जाएगी।

बेटी जन्मी तो -
मायूसी भरी ख़ुशी फैल जाएगी,
माँ-बाप को तुरंत दहेज़ समस्या सताएगी,
बेटी पराया धन संबोधन से बातें बताई जाएंगी,
जच्चा-बच्चा की भी ठीक से देख-भाल नहीं की जाएगी।

बेटा चार वर्ष का होने पर  -
सबसे अच्छे स्कूल में दाखिला दिलाया जाएगा,
स्कूल डोनेशन में लोन ले तमाम धन लगाया जाएगा,
उसके बड़ा होकर अफसर बनने का दंभ दिखाया जाएगा,
बड़ा होकर बाप का नाम रौशन करने का ख़याल बुना जाएगा।

बेटी चार वर्ष की होने पर  -
घर के नज़दीक स्कूल में नाम लिखाया जाएगा,
पूरे समय उसकी रखवाली कर डर-डर के पाला जाएगा,
उसके सवाल "आखिर क्यों" पर उसे चुप भी कराया जाएगा,
भाई तो आखिर लड़का है ये अहसास बार-बार कराया जाएगा।

बेटा सोलह वर्ष का होने पर -
हाई स्कूल के बाद ज़िद्द पर उसे बाइक दिलाई जाएगी,
उसकी खुशी का ध्यान रख उसकी पॉकेटमनी बढ़ाई जाएगी,
स्टंट,इश्क की बातों पर लड़का है कह उसकी गलतियाँ दबाई जाएंगी,
पढ़ने में फिसड्डी होने पर भी उसके अफसर बनने की आस लगाईं जाएगी।

बेटी सोलह वर्ष की होने पर -
उसके उठने-बैठने पर सलीके की मोहर लगाई जाएगी ,
घर में भी खुल कर हंसने,बोलने पर उसके रोक बढ़ाई जाएगी ,
पराए घर जाने का वास्ता दे घर-गृहस्थी की बातें सिखाई जाएंगी ,
गलती से इश्क कर बैठी तो कुलच्छिनी,कलमुंही कहकर पीटी जाएगी।

बेटे के विवाह पर -
सुन्दर,सुशील,गृहकार्य दक्ष,रईस बहू ढूंढी जाएगी,
बेटे की आयुवृद्धि को करवाचौथ,वट सावित्री कराई जाएगी,
जल्दी से जल्दी पोता देने की बार- बार बात दोहराई जाएगी,
किसी कारणवश बहू चल बसी तो दूसरी की जुगत लगाई जाएगी,

बेटी के विवाह पर -
विवाह बाद बोझ हल्का हुआ कह गंगा नहाई जाएगी,
ससुराल से अब अर्थी निकले यही सोच समझाई जाएगी,
सुहागन मरी तो बैकुंठ अधिकारिणी कह बात भुलाई जाएगी,
और कहीं यदि विधवा हो गई तो भाई-भाभी पर बोझ ही कहलाएगी।

आखिर ऐसा क्यों ?
भारतीय समाज में सदा ही ये तुलना सोची जाएगी,
लड़का सहजोर छुरी तो लड़की कमजोर कददू ही कहलाएगी,
बेटे को खुला आसमान और बेटी पंख कतर पिंजरे में पाली जाएगी,
ये सोच न पहले बदली थी,न अब बदली है और न आगे बदली जाएगी।

                                                                   
                                                                            ( जयश्री वर्मा )


Wednesday, January 8, 2014

नववर्ष की भोर

वो देखो तो चीर कर अन्धकार घनघोर ,
थामे हांथों में चमकती किरणों कि डोर ,
दौड़ती आ रही लहरों के रथ पर  सवार,
बीती रात्रि को हरा आ रही नवेली भोर।

पंछी हँसते कर कलरव,किलोल,शोर ,
इस धरती का देखो झूम उठा मनमोर ,
पूरी सृष्टि को सूरज लाली में बोर-बोर ,
रंगती जाती हर पल,क्षण हर पोर-पोर।

थामें हुए हाथों में सूरज किरणों कि डोर ,
आती आलिंगन करने नववर्ष की भोर।
नव वर्ष में नव तरंग संग नए गीत हम गाएं,
नए वर्ष में नए विचार संग नए उत्थान हम लाएं। 


                                   ( जयश्री वर्मा )



मित्रों विलम्ब से ही सही मेरी तरफ से -
नव वर्ष आप सभी के लिए मंगलमय हो !!!
यह नव वर्ष आप सभी के लिए खुशियां,
उन्नति,संपन्नता और सुकून लेकर आए !!!